मिजोरम : CM जोरमथांगा समेत 12 विधायकों ने ली मंत्री पद की शपथ

आइजोल। ईसाई बहुल राज्य मिजोरम में शनिवार को मिजो नेशनल फ्रंट(एमएनएफ) के अध्यक्ष 74 वर्षीय जोरमथांगा ने मुख्यमंत्री पद एवं गोपनियता की शपथ ली। 40 सदस्यीय विधानसभा में 26 सीटों पर जीत दर्ज कर एमएनएफ ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। उन्होंने राजधानी आइजोल के राजभवन में एक समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
इस मौके पर उप मुख्यमंत्री के रूप में ताउनलिइया, आर लालजिरनिया, लालचामलियाना, लालजिरलियाना एवं लालरिनसांगा, के लालरिलियाना, लालसानदामा, रालते, लालरुवातकिमा, डॉ के वेइशुवा, टीजे लालनुनतलुवांगा एवं रॉबर्ट रुमाविया राल्टे ने पद एवं गोपनियता की शपथ ली।
एमएनएफ के नवनिर्वाचित विधायकों ने जोरमथांगा को पहले ही विधायक दल का नेता चुन लिया था। विधानसभा चुनावों में शानदार जीत मिलने के कुछ घंटों के बाद जोरमथांगा के नेतृत्व में एमएनएफ के तीन नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल कुम्मनम राजशेखरन से राजभवन में मुलाकात करके सरकार बनाने का दावा पेश किया।
जोरामथांगा ने हांलाकि चुनाव परिणाम आने के बाद 15 दिसम्बर तक सरकार बना लेने का दावा किया था। जोरमथांगा ने साफ कहा है कि वो भाजपा के एकमात्र विधायक बुद्धधन चकमा को अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं करेंगे। एमएनएफ, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) और नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक एलायंस(नेडा) का सहयोगी दल है।
उल्लेखनीय है कि मिजोरम चुनाव में 10 वर्षों तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस को महज पांच सीटें ही मिली हैं, जबकि पिछले विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 34 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। एमएनएफ ने 10 साल बाद राज्य की सत्ता में वापसी की है। वर्ष 1986 के बाद से मिजोरम में सत्ता कभी कांग्रेस और कभी एमएनएफ के हाथों में रही है। कांग्रेस की हार के साथ ही पूर्वोत्तर से कांग्रेस का वर्चस्व पूरी तरह से समाप्त हो गया है। राज्य में जेडपीएम को आठ और भाजपा को एक सीट मिली है।
जोरामथांगा का जन्म जुलाई,1944 में समथांगा गांव में हुआ था। दरफुंगा और वानुआइछिंगी के आठ बच्चों में दूसरे छोटे पुत्र हैं। उनके पांच भाई और तीन बहनें हैं। वर्ष 1950 में प्राथमिकी विद्यालय में शिक्षा के लिए दाखिला लिया। जबकि 1954 में वे दक्षिण खौबुंग में मीडिल स्कूल में दाखिला लिया। इस तरह 1956 में वे छठी कक्षा पास की। 1957 में वे चम्फाई गांधी मेमोरियल हाईस्कूल में सातवीं कक्षा में नाम लिखाया। उन्होंने 160 में मणिपुर के डीएम कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की। इस बीच 1966 में मिजो स्वतंत्रता आंदोलन का शुभारंभ हुआ, तो ज़ोरमथांगा भूमिगत आंदोलन में शामिल होकर जंगल में चले गए। उन्हें रन बंग एरिया के सचिव के पद संगठन में जिम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने तीन साल तक जिम्मेदारी पूर्व निभाया। 1969 में सभी एमएनएफ कार्यकर्ता पूर्वी पाकिस्तान(अब बांग्लादेश) चले गए। बाद में एमएफएम के अध्यक्ष लालडेंगा ने उन्हें अपने सचिव के रूप में अहम जिम्मेदारी सौंपी।
1979 में संगठन में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई। इस दौरान विद्रोही गतिविधियों में संलिप्तता के चलते सेना ने गिरफ्तार कर लिया। लालडेंगा के नेतृत्व में एमएफएम ने आत्मसमर्पण किया। जिसके बाद लालडेंगा के नेतृत्व में 1987 गठित अंतरिम सरकार में जोरामथांगा को वित्त और शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया गया था। 1990 में जब लालडेंगा की मृत्यु हुई तो वह मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष बने। जब 1998 के अंत में एमएनएफ विधानसभा का चुनाव हुआ तो उन्होंने अपनी पार्टी को जीत दिलाने में सफल रहे।
इस तरह से वह मिजोरम के पांचवें मुख्यमंत्री बने। उन्हें 2003 में फिर से निर्वाचित किया गया लेकिन 2008 के विधानसभा चुनावों में उत्तर चम्फाई और दक्षिण चम्फाई दो सीटों से वे चुनाव हार गए। उनकी पार्टी की भी करारी हार हुई, जिसके चलते उनके हाथ से सत्ता चली गई। वहीं 2013 में भी एमएनएफ चुनाव नहीं जीत सकी लेकिन 2018 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में एमएनएफ फिर से स्पष्ट बहुमत के साथ चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी करने में सफल हुई है।