कौन है छत्रपति शिवाजी महाराज, 5000 सैनिकों को चकमा देकर आगरा के किले से भाग निकले थे, जानिए

नई दिल्ली। छत्रपति शिवाजी महाराज या शिवाजी राजे भोसले, जो कि मराठा कूर्मि जाति से आते है! सन (1630-1680) भारत के राजा एवं रणनीतिकार थे उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने।
शिवाजी ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया। उन्होंने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की।
उन्होंने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया।
छत्रपति शिवाजी महाराज को कौन नहीं जानता। वर्ष 1674 में उन्होंने ही पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। उन्होंने कई सालों तक औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया और मुगल सेना को धूल चटाई।
शिवाजी महाराज की मुगलों से पहली मुठभेड़ वर्ष 1656-57 में हुई थी। बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हो गया था, जिसका लाभ उठाते हुए मुगल शाहजादा औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया।
उधर, शिवाजी ने भी जुन्नार नगर पर आक्रमण कर मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और 200 घोड़ों पर कब्जा कर लिया। इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफा हो गया। जब बाद में औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को कैद करके मुगल सम्राट बना, तब तक शिवाजी ने पूरे दक्षिण में अपने पांव पसार दिए थे। इस बात से औरंगजेब भी परिचित था।
उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्ता खां ने अपनी 1,50,000 फौज के दम पर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार करते हुए मावल में खूब लूटपाट की। शिवाजी को जब मावल में लूटपाट की बात पता चली तो उन्होंने बदला लेने की सोची और अपने 350 मवलों के साथ उन्होंने शाइस्ता खां पर हमला बोल दिया।
इस हमले में शाइस्ता खां को बचकर निकलने में कामयाब रहा, लेकिन इस क्रम में उसे अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। बाद में औरंगजेब ने शाहजादा मुअज्जम को दक्षिण का सूबेदार बना दिया।
औरंगजेब ने बाद में शिवाजी से संधि करने के लिए उन्हें आगरा बुलाया, लेकिन वहां उचित सम्मान नहीं मिलने से नाराज शिवाजी ने भरे दरबार में अपना रोष दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। इससे नाराज औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में कैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों का पहरा लगा दिया, लेकिन अपने साहस और बुद्धि के दम पर वो सैनिकों को चकमा देकर वहां से भागने में सफल रहे।
शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में कई बार मुगलों की सेना को मात दी थी। बाद में 3 अप्रैल, 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई, लेकिन आज भी दुनिया उनके पराक्रम और साहस को नहीं भूली है।