2023-09-30

पूर्व राष्ट्रपति सहित इन हस्तियों को मिलेगा ‘भारत रत्न’

नई दिल्ली। प्रणब मुखर्जी के बारे में एक बात अक्सर कही जाती है कि वे ऐसे प्रधानमंत्री थे जो देश को ही मिले नहीं नहीं। राज्यसभा सदस्य से सियासी कैरियर शुरू करने वाले प्रणब दा राष्ट्रपति तो बने लेकिन दो बार मौका आने के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बन सके।

पश्चिम बंगाल में वीरभूम जिले के मिराती गांव में 11 दिसंबर 1935 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कामदा मुखर्जी और राजलक्ष्मी मुखर्जी के घर जन्मे मुखर्जी को भारतीय राजनीति में उत्कृष्ट राजनेता, सादगी पसंद और कांग्रेस के संकटमोचक के तौर पर जाना जाता है।

पांच बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा के लिए चुने गए प्रणब इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह सरकार तक महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। राजनीति विज्ञान के शिक्षक के तौर पर कैरियर शुरू करने वाले प्रणब दा की राजनीतिक प्रतिभा को देखते हुए मात्र 34 वर्ष की उम्र में इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इंदिरा सरकार में वित्त मंत्री बने। उनके निधन के बाद माना गया कि सबसे सीनियर मंत्री होने के नाते प्रणब कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनेंगे।

हालांकि प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी और इसके बाद प्रणब को पार्टी में दरकिनार किया जाने लगा। लंबे समय तक साइड लाइन रहे प्रणब ने कांग्रेस छोड़ दी। करीब तीन साल बाद उनकी पार्टी का फिर कांग्रेस में विलय हो गया। 1991 में राजीव की हत्या के बाद पीवी नरसिंहराव ने प्रणब को योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया। इसके बाद वे विदेश मंत्री बने। 2004 में सोनिया गांधी के नेतृत्व में यूपीए को बहुमत मिला। विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया ने प्रधानमंत्री न बनने की घोषणा की तो प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के साथ प्रणब का भी नाम आगे आया।

यहां दूसरी बार भी प्रणब पीएम की रेस में पिछड़ गए और बाजी मनमोहन के हाथ रही। जिस व्यक्ति को प्रणब ने रिजर्व बैंक का गवर्नर बनवाया था वो प्रधानमंत्री बना और प्रणब पहले रक्षामंत्री और फिर विदेश मंत्री बनाए गए। मनमोहन के दोनों कार्यकाल में, राष्ट्रपति बनने से पहले तक सारे राजनीतिक मामलों मुखर्जी ही संभालते रहेे। 2004 से 2012 के बीच प्रणब 95 से ज्यादा मंत्री-समूहों के अध्यक्ष रहे।
बहन ने कहा था राष्ट्रपति बनोगे

प्रणब दा पहली बार सांसद बने तो उनसे मिलने उनकी बहन आई थीं। चाय पीते हुए प्रणब ने कहा, वो अगले जनम में राष्ट्रपति भवन में बंधे रहने वाले घोड़े के रूप में पैदा होना चाहते हैं। इस पर उनकी बहन अन्नपूर्णा देवी ने कहा था, घोड़ा क्यों, तुम इसी जनम में राष्ट्रपति बनोगे। भविष्यवाणी सही साबित हुई और प्रणब दा 25 जुलाई 2012 को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के राष्ट्रपति बने।

लगभग जिंदगीभर कांग्रेस में रहे प्रणब हमेशा भाजपा की विचारधारा की मुखालफत करते रहे। इसके बावजूद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्ते बेहद अच्छे हैं। एक बार मोदी ने प्रणब को पितातुल्य कहा था।

नानाजी ने दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद दर्शन को धरातल पर उतारने का कठिनतम काम करने का बीड़ा उठाया था। उत्तर प्रदेश के गोंडा से शुरू हुई इस विकास यात्रा की पूर्णाहुति चित्रकूट के बहुआयामी ग्रामोदय प्रकल्प से हुई।

राष्ट्रवादी विचारक और राजनेता नानाजी देशमुख को समाज के पुनर्निर्माण के लिए जाना जाता है। उन्होंने यूपी और मध्यप्रदेश के लगभग 500 गांवों की सूरत बदलने का काम किया। वे कहते थे कि 60 साल की उम्र के बाद राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए। नानाजी ने भगवान राम की तपोभूमि चित्रकूट को अपनी कर्मभूमि बनाया।

“ग्रामीण विकास में नानाजी देशमुख के महत्वपूर्ण योगदान ने गांवों में रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने के लिए आदर्श राह दिखाई। वे दलितों के लिए विनम्रता, करुणा और सेवा का साकार रूप थे। वह सही मायने में भारत रत्न हैं। प्रणब दा और भूपेनदा को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने पर बेहद खुश हूं।

भूपेन हजारिका ऐसे विलक्षण प्रतिभा के धनी कलाकार रहे जो खुद अपना गीत लिखते थे, संगीत देते थे और उसे गाते भी थे।

8 दिसंबर 1926 को असम में जन्मे भूपेन हजारिका का पांच नवंबर 2011 को निधन हो गया था भूपेन हजारिका के गीतों ने लाखों को दीवाना बनाया।

उन्होंने कई गीतों को जादुई आवाज दी ओ गंगा तू बहती क्यों है और दिल हूम हूम करे जैसे गीतों ने भूपेन हजारिका को प्रशंसकों को दिलों में हमेशा के लिए बसा दिया।

असम का निवासी होने के कारण भूपेन असमिया संस्कृति और संगीत से भी जुड़े रहे भूपेन हजारिका का जन्म असम के तिनसुकिया जिले की सदिया में हुआ था।

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