प्रियंका गांधी का राजनीति में पदार्पण, मोदी-योगी की जोड़ी…
नई दिल्ली। प्रियंका गांधी के रूप में गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी के एक और सदस्य का सक्रिय राजनीति में पदार्पण हो गया है। अब तक खुद को अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र तक सीमित रखने वाली प्रियंका के सामने सपा-बसपा गठबंधन और मोदी-योगी की जोड़ी का करिश्मा तोड़ने की बड़ी चुनौती है।
कांग्रेस ने प्रियंका को राष्ट्रीय महासचिव के साथ ही पूर्वांचल का प्रभारी बनाया है। सिंधिया को पश्चिमी यूपी की जिम्मेदारी दी है। सपा-बसपा गठबंधन में जगह न मिलने पर कांग्रेस ने यूपी का रण जीतने के लिए प्रियंका को तुरुप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल किया है। युवा नेताओं को कमान सौंपने का कितना चुनावी फायदा मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलने की संभावना से कोई इनकार नहीं कर रहा।
कांग्रेस को पूर्वी यूपी के जटिल जातीय समीकरणों को साधने के साथ ही पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण की भाजपा की रणनीति की काट ढूंढनी पड़ेगी। इसके लिए प्रियंका को न केवल पूर्वांचल में सक्रियता दिखानी है, वरन राजनीतिक कौशल को भी साबित करना होगा।
कांग्रेस ने प्रियंका को ऐसे समय में सक्रिय राजनीति में उतारा गया है जब बसपा-सपा ने दलित-पिछड़े वोटों के लिए गठबंधन किया है। मोदी-योगी और मायावती-अखिलेश के तिलिस्म को तोड़ना प्रियंका के लिए अभी बहुत आसान नहीं होगा।
भाजपा व बसपा-सपा के मजबूत संगठन के आगे प्रियंका की लोकप्रियता को वोटों में तब्दील करना बड़ी चुनौती है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रियंका की सक्रियता से कई सीटों पर मुसलमानों मतों का बंटवारा हो सकता है। भाजपा यही चाहती है। हालांकि ब्राह्मण मतों में सेंधमारी करके वह भाजपा को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं।
प्रियंका के आने के बाद त्रिकोणात्मक लड़ाई का परिदृश्य बनेगा। कुछ लोग प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। कांग्रेस चुनाव में इसे भुनाना चाहेगी। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष खालिद मसूद भी मानते हैं कि प्रियंका की सक्रियता का पूर्वी यूपी व उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर में असर पड़ेगा। प्रियंका के ग्लैमर का युवा, महिलाओं व मुसलमानों में प्रभाव देखने को मिलेगा।
प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आते ही यह आकलन प्रारंभ हो गया है कि इससे किसे नफा-नुकसान होगा। दलित चिंतक बद्रीनारायण मानते हैं कि प्रियंका की सक्रियता का गहरा असर होगा। कांग्रेस थर्ड ब्लॉक के रूप में उभरेगी। कांग्रेस सपा-बसपा गठबंधन को भी नुकसान पहुंचाएगी और भाजपा के भी वोट काटेगी।
चुनाव अभियान में प्रियंका को पीएम मोदी के सामने रखा जाएगा। वह भाजपा पर हमला करेंगी। हालांकि, जरूरी नहीं कि इसका कांग्रेस को पूरा लाभ मिले। वह बताते हैं कि वर्ष 2012 में राहुल गांधी ने मायावती पर तीखा हमला किया था। हाथी चारा खाता है, जैसे उनके डायलॉग चर्चित हुए थे लेकिन उनके अभियान का लाभ कांग्रेस के बजाय मुख्य विपक्षी दल सपा को मिला था। कई जगह जातीय गणित चुनाव समीकरण को प्रभावित करेंगे।