गहलोत कैबिनेट का फैसला: राजस्थान में जनता नहीं, पार्षद चुनेंगे महापौर और निकाय अध्यक्ष

जयपुर। प्रदेश में होने वाले नगर निकाय चुनावों में अब जनता नहीं, बल्कि पार्षद ही नगर निकाय सभापति, चेयरमैन और महापौर को चुनेंगे। यानी निकाय प्रमुख का चुनाव अब अप्रत्यक्ष रूप से होगा।
सोमवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला लिया गया। नवंबर में प्रदेश में नगर निकाय व निगमों के चुनाव होने हैं। स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने इस निर्णय की पुष्टि की।
प्रत्यक्ष तरीके से चुनाव हुआ तो हिंसक घटनाएं हो सकती हैं: मंत्री
धारीवाल ने बताया कि कैबिनेट बोर्ड ने कई कारणों से यह बदलाव किया है। उन्होंने कहा देश में आज असुरक्षा, जनता में भय आक्रोश और हिंसा का माहौल है। भाजपा जनता को जातिवाद में बांटने की कोशिश कर रही है।
दिसंबर-2019 में गहलोत सरकार ने राज्य में सत्ता की कमान संभालने के बाद मेयर का चुनाव अप्रत्यक्ष की बजाए प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली से कराए जाने का निर्णय लिया था।
इसमें पार्षदों के बजाए मेयर प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए जनता द्वारा चुने जाने का निर्णय लिया गया था। लेकिन नगर निकाय चुनाव आते ही गहलोत कैबिनेट ने यू-टर्न लेकर अपने ही फैसले को बदल दिया।
कांग्रेस ने पिछली सरकार के समय यह व्यवस्था लागू की थी। इसके बाद जयपुर में कांग्रेसी की पहली निर्वाचित मेयर ज्योति खण्डेलवाल बनी थी। हालांकि तब जयपुर नगर निगम में बोर्ड बीजेपी पार्षदों का बना था।
कई बार मेयर और बोर्ड के बीच संघर्ष की स्थिति दिखी थी। कई फैसले नहीं हो सके थे। कई बार बोर्ड में शामिल पार्षदों व महापौर के बीच टकराव की नौबत आई थी।
कांग्रेस सरकार के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने बताया कि धारा 370 हटाने और केंद्र सरकार के कई अहम निर्णयों के बाद देश और प्रदेश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही है।
हाल ही में लोकसभा चुनावों में भारी जीत से कांग्रेस सरकार घबरा गई। सरकार का यह फैसला बौखलाहट और घबराहट के अलावा हार के डर को दर्शाता है। सरकार चाहे कोई भी निर्णय कर लें, भाजपा आगामी निकाय चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाली है।